
कोरोना के समय में चीन के ऊपर एक कहावत सटीक बैठती है। वह कहावत है रस्सी जल गयी लेकिन बल नहीं गया। चीन भी इसी जली हुई रस्सी की तरह अपना बल दिखाने का एक मौका नहीं छोड़ रहा है। कोरोना के बाद से चीन में अमेरिका और ताइवान के खिलाफ लहर चल रही है। कई तो ताइवान पर हमले की बात कर रहे हैं। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार चीन के एक रिटायर्ड मिलिटरी लीडर ने यह तक कह दिया है कि ताइवान की मदद अभी अमेरिका भी नहीं कर सकता है क्योंकि उसके इंडो पैसिफिक में भ्रमण करने वाले चारो विमान वाहक युद्धपोत कोरोना की चपेट में आए हुए हैं।
दरअसल, ताइवान ने जिस तरह से कोरोना वायरस पर चीन की पोल खोली है उसके कारण सरकारी तंत्र से लेकर चीन की जनता भी ताइवान के खिलाफ आग उगल रही है। यही नहीं ताइवान ने चीन की मास्क डिप्लोमेसी की भी धज्जियां उड़ा दी थी। इन सभी में अमेरिका ने ताइवान का खूब समर्थन किया। इसी कारण से चीन में राष्ट्रवादी भावना बढ़ रही है और लोग ताइवान में स्वतंत्रता-समर्थक ग्रुप और महामारी पर अमेरिका द्वारा की गयी चीन की आलोचना के लिए इन दोनों देशों को सबक सिखाने की बात करने लगे हैं।
सोशल मीडिया पर यह भावना बढ़ रही है कि इसी समय ताइवान पर हमला कर उसे चीन में पूरी तरह से मिला लेना चाहिए। इसी पर किसी रिटायर्ड मिलिटरी लीडर ने यह सुझाव दिया कि अमेरिका ताइवान की मदद नहीं कर सकता है क्योंकि उसके इंडो पैसिफिक के चारो विमान वाहक युद्धपोत कोरोना की चपेट में आए हुए हैं।
यह भावना सिर्फ सोशल मीडिया तक व्याप्त है, यह सोचने की भूल नहीं करनी चाहिए। चीन के रुख को देखते हुए यह कहा जा सकता है वह ऐसे फैसले लेने से पीछे नहीं हटेगा। ऐसे में यह ताइवान के लिए खतरे की घंटी है। यह अमेरिका के लिए भी चिंता का विषय है कि उसके सभी युद्धपोत पर कोरोना के मरीज मिल रहे हैं। कुछ दिनों पहले ही यह खबर आई थी कि अमेरिका के यूएसएस थियोडोर रूजवेल्ट विमान वाहक पोत के चालक दल के 4,800 सदस्यों में से 10 प्रतिशत से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं।
कोरोना वायरस ने अमेरिकी नौसेना को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। इसके बाद सेना और फिर वायुसेना प्रभावित है। अमेरिकी पत्रिका न्यूज वीक के मुताबिक अमेरिका के 41 राज्यों में स्थित 150 सैन्य ठिकानों तक कोरोना वायरस पहुंच गया है। यही नहीं 4 परमाणु ऊर्जा चालित विमानवाहक पोत भी कोरोना वायरस की चपेट में आ गए हैं। यही कारण है कि अमेरिकी सेना की सभी गैर जरूरी गतिविधियां रुकी हुई हैं।
चीन इस स्थिति को जानता है और और वह जिस तरह से दक्षिण चीन सागर में आक्रमकता दिखा रहा है, उससे यही स्पष्ट होता है कि वह कोरोना के समय का इस्तेमाल अपनी पैठ बनाने के लिए कर रहा था। लेकिन साथ ही अमेरिका को भी इस स्थिति के बारे में पता है और वह लगातार इन क्षेत्रों में गश्त बढ़ाए हुए है।
बता दें कि कुछ दिनों पहले ही चीन ने पूर्वी चीन सागर में स्थित सेनकाकू द्वीप के पास जापान की समुद्री सीमा में जहाज भेज दिए थे। इसके जवाब में अमेरिका ने अपने guided-missile destroyer USS Barry को ताइवान के स्ट्रेट में उतार दिया था। चीन को काबू में रखने के लिए अमेरिका ने एक महीने के भीतर दूसरी बार ऐसा किया था। अब तो इन अमेरिकी पोतों का साथ देने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने युद्धपोतों को चीन के खिलाफ उतार दिया है। कुछ दिनों पहले ही अमेरिका ने भी चीन को अपनी उपस्थिति बताने के लिए गुआम द्वीप के अपने एयर फोर्स बेस पर एक elephant walk का आयोजन किया था। यह Andersen Air Force बेस चीन से करीब 1800 मिल दूर है। Elephant Walk बम वर्षक विमानो का एक जुलूस होता है, जिसमें कम से कम एक दर्जन अमेरिकी नौसेना और वायु सेना के विमान शामिल होते हैं।
हालांकि, अमेरिका ने ताइवान का खुल कर समर्थन किया है और आगे भी करता रहेगा। चीन कितनी भी करतूतें कर ले, वह ताइवान को अपने कब्जे में नहीं कर सकता है। पूरा विश्व चीन के खिलाफ होता जा रहा है और ऐसे समय में चीन अगर कुछ भी इस तरह का आक्रमण करता है तो उसे ही गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
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