
उर्दू के मशहूर और विवादित शायर मुनव्वर राना ने एक विवादित ट्वीट में लिखा कि भारत में 35 करोड़ इंसान और 100 करोड़ जानवर रहते हैं। इसके साथ ही मुनव्वर राना ने लिखा है कि ये 100 करोड़ चुनावों में वोट देने के ही काम आता है।
यह पहली बार नहीं है जब मुनव्वर राना ने विवादों के ज़रिए सस्ती लोकप्रियता का जुगाड़ किया हो। लेकिन सवाल यह हो गया है कि एक लम्बे अरसे तक लोगों के बीच लोकप्रिय कहे जाने वाले ये शायर, उदारवादी, नव-बुद्धिजीवी आखिर 2014 के बाद से ही सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसे प्रयोग क्यों कर रहे हैं?
राहत इंदौरी से लेकर मुनव्वर राना, अनुराग कश्यप और ऐसे ही अन्य कथित उदारवादियों की जमात को आखिर पिछले कुछ सालों से ही ऐसे स्टंट की जरूरत क्यों पड़ गई? इन सब के जरिए अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना क्यों आखिरी विकल्प हो गया?
यह सब घटनाक्रम अवॉर्ड वापसी की नौटंकी के बाद से अचानक शुरू हुआ था। कुछ ऐसे लोग थे, जिन्होंने तय कर लिया था कि अब अवॉर्ड वापसी ही इस देश में एकमात्र विपक्ष कहलाएगा। इसके लिए समय-समय पर नव-उदारवादियों द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी को बलि का बकरा बनाया गया।
लेकिन इनके ‘अच्छे दिन’ नहीं आए और उदारवादियों की चहेती पार्टी फिर सरकार बनाने से चूक गई। 2019 में एक बार फिर दक्षिणपंथी भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र में स्थापित हो गई।
इसके बेहद दूरगामी परिणाम सामने आए। हुआ यह कि वामपंथी और नव-उदारवादी अब अपनी बेचैनी पर नियंत्रण कर पाने में पूरी तरह असमर्थ हो चुके हैं।
यही वजह है कि मुनव्वर राना ने एक ही ट्वीट के ज़रिए अपनी मंशा स्पष्ट करते हुए हिंदुओं को जानवर और वोट बैंक बता दिया। मुनव्वर राणा ने यह ट्वीट भाजपा नेता संबित पात्रा को सम्बोधित करते हुए भारत में रहने वाले लोगों को लेकर लिखा है।
कल शाम ही मुनव्वर राना ने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर लिखा है –
“डियर संबित, कॉन्ग्रेस की जवानी में तो आप गब्हे पे रहे होंगे (गब्हे का मतलब आप उड़ीसा में नहीं यूपी में पूछना)। लेकिन कोरोना पर सरकार की नाकामी ने मेरी इस बात को सही साबित किया कि भारत में 35 करोड़ इंसान और 100 करोड़ जानवर रहते हैं, जो सिर्फ वोट देने के काम आते हैं।”
अपने इस ट्वीट पर एक कमेंट में मुनव्वर राना ने लिखा है – “मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूँ, हैरत है कि सर मेरा क़लम क्यूँ नहीं होता।”
मुनव्वर राना वर्तमान सरकार और उसके क्रियाकलापों को लेकर इतने आश्वस्त हैं कि वह जानते हैं कि वो चाहें तब भी यह सरकार उन्हें कोई ऐसा कदम नहीं उठाने देगी।
अवॉर्ड वापसी के कुछ समय बाद ही मुनव्वर राना ने PM मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि अच्छा शासक वो है, जो 60 साल की खराबियों को पाँच साल में ठीक कर दे, तो ही इतिहास में अकबर की तरह मोदी द ग्रेट लिखा जाएगा।
मुनव्वर राना ने दादरी की घटना के बाद भी हिंदुओं को निशाना बनाते हुए कहा था कि देश ने अभी तक यह फैसला नहीं किया है कि आतंक शब्द का मतलब क्या है। उन्होंने कहा कि जिस दिन आतंक की परिभाषा तय हो गई, बहुत सारी पार्टियाँ प्रतिबंधित हो जाएँगी।एक शायर शब्दों की कंगाली से जूझ रहा है
आप यदि 2015 के मुनव्वर राना के बयान और 2020, यानी कल के बयान में अंतर तलाशेंगे तो सबसे खास बात उनके शब्दों को इस्तेमाल करने की तरकीब में आया खुलापन है। 2015 में वो सिर्फ इशारों में ही हिंदुओं के खिलाफ बयान देने में सक्षम नजर आते हैं जबकि 2020 तक उनकी बौखलाहट इतनी बढ़ गई कि उन्होंने ‘बुद्धिजीवी’ वाले सारे मुखौटे त्यागकर स्पष्ट शब्दों में हिंदुओं की आबादी को जानवर घोषित कर दिया।
वास्तव में, चाहे नसीरुद्दीन शाह हो, मुनव्वर राना हो या फिर राहत इंदौरी हो, इन सबने खुद ही अपने आप को बेनकाब करने का काम किया है।
इन कलाकारों को ऐसी क्या दिक्कत आ गई कि ये अपनी अभिव्यक्ति के प्रकटन के लिए इतने निम्नस्तरीय और घृणित शब्दों का इस्तेमाल करने पर विवश हो गए?
गत वर्ष दिसम्बर माह में नागरिकता कानून के विरोध में भी मुनव्वर राना परिवार सहित फन फैलाते देखे गए। लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में प्रदर्शन करने को दौरान मुनव्वर राना की बेटियों के खिलाफ धारा-144 के उल्लंघन का मामला दर्ज होने के बाद उन्होंने सरकार के खिलाफ जहर उगला था।
लेकिन हक़ीक़त यही है कि मुनव्वर राना की जमात विटामिन-C यानी, विटामिन-कॉन्ग्रेस की कमी से जूझ रही है। उनके अन्नदाता स्वयं हर तरह से बेनक़ाब हो चुके हैं। उनकी अपनी ही झोली में अब लुटाने के लिए पुरस्कारों का अकाल है।
यही वजह है कि अब स्टेज पर उन्हें जो मौके नहीं मिलते, उनकी पूर्ति वो ट्विटर और सोशल मीडिया पर अपने मजहबी जहर को उगलकर करने को मजबूर हैं।
Taxi moto line
128 Rue la Boétie
75008 Paris
+33 6 51 612 712
Taxi moto paris
It’s not my first time to pay a visit this web site, i am
visiting this website dailly and get pleasant data from
here everyday.