
खजुराहो आज विश्व धरोहर है. वहां भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की नायाब मिसाल देखने को मिलती है. हर साल इसे निहारने हजारों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं और भव्य प्रतिमाओं को अपने कैमरों में कैद करते हैं साथ ही उनके बारे में जानकारियां लेते हैं और निकल जाते हैं. लेकिन चंदेल राजाओं द्वारा मंदिरों में बनवाई गईं कामुक प्रतिमाओं का रहस्य दोस्तों आज भी बरकरार है. आपको बता दें कि आखिर क्या वजह थी कि मंदिरों में आध्यात्म, रतिक्रीड़ा, नृत्य मुद्राओं और प्रेम रस की प्रतिमाओं को उकेरा गया? इसे लेकर जानकारों के अलग-अलग मत हैं.

दोस्तों मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का इतिहास काफी पुराना है. खजुराहो का नाम खजुराहो इसलिए पड़ा है क्योंकि यहां खजूर के पेड़ों का विशाल बगीचा था. खजिरवाहिला से नाम पड़ा खजुराहो. खजुराहो में वे सभी मैथुनी मूर्तियां अंकित की गई हैं, जो प्राचीनकाल का मानव उन्मुक्त होकर करता था जिसे न ईश्वर का और न धर्मों की नैतिकता का डर था. हालांकि रखरखाव के अभाव में एक ओर जहां ये मूर्तियां जहां नष्ट हो रही हैं, वहीं लगातार इन धरोहरों से मूर्तियों की चोरी की खबरें भी आती रही हैं।

अब सवाल ये उठता है कि मंदिर जैसी पवित्र जगह पर इस तरह की मैथुनी मूर्तियां क्यों बनाई गईं? क्या इसे बनाते वक्त धर्मगुरुओं ने इसका विरोध नहीं किया? क्या खजुराहो के मंदिरों का तंत्र और कामसूत्र से कोई संबंध है? आखिर कौन-कौन-सी मुद्राओं की यहां पर मूर्तियां हैं… तो आगे की कड़ी में आपको इनका भी जवाब आज मिल जाएगा…

खजुराहो के मंदिर के निर्माण के संबंध में बुंदेलखंड में एक जनश्रुति प्रचलित है. कहा जाता हैं दोस्तों कि एक बार राजपुरोहित हेमराज की पुत्री हेमवती संध्या की बेला में सरोवर में स्नान करने पहुंची. उस दौरान आकाश में विचरते चंद्रदेव ने जब स्नान करती अति सुंदर और नवयौवना से भीगी हुई हेमवती को देखा तो वे उस पर आसक्त हुए बगैर नहीं रह पाए. उसी पल वे रूपसी हेमवती के समक्ष प्रकट हुए और उससे प्रणय निवेदन किया. साथ ही कहते हैं कि उनके मधुर संयोग से जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसने ही बड़े होकर चंदेल वंश की स्थापना की. समाज के भय से हेमवती ने उस बालक को वन में करणावती नदी के तट पर पाला और उसका नाम चंद्रवर्मन रखा.

बड़ा होकर चंद्रवर्मन एक प्रभावशाली राजा बने. एक बार उसकी माता हेमवती ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर ऐसे मंदिरों के निर्माण के लिए प्रेरित किया, जो समाज को ऐसा संदेश दें जिससे समाज ये समझ सके कि जीवन के अन्य पहलुओं के समान कामेच्छा भी एक अनिवार्य अंग है और इस इच्छा को पूर्ण करने वाला इंसान कभी पापबोध से ग्रस्त न हो.

ऐसे मंदिरों के निर्माण के लिए चंद्रवर्मन ने खजुराहो को चुना. साथ ही इसे अपनी राजधानी बनाकर उसने यहां 85 वेदियों का एक विशाल यज्ञ किया. बाद में इन्हीं वेदियों के स्थान पर 85 मंदिर बनवाए गए थे जिनका निर्माण चंदेल वंश के आगे के राजाओं द्वारा जारी रखा गया. आपको बता दें दोस्तों कि 85 में से आज यहां केवल 22 मंदिर शेष हैं. 14वीं शताब्दी में चंदेलों के खजुराहो से प्रस्थान के साथ ही सृजन का वे दौर भी खत्म हो गया।
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